समंदर के रेतसे साहिल पे, घर बनाने की आरजू थी
बहकी बहकी लहरोंसे, मुझे दिल्लगी की आरजू थी |
बहता गया इस जिंदगी के साथ, या फिर बहाया गया
तुझसे मुलाकात के बाद, मुझे किनारे की आरजू थी |
बुझा न दे कही ये हवाएं, काँपती लौ को छुपा दिया
जला क्यों हाथ मेरा, मुझे कसूर जानने की आरजू थी |
मीर का मुद्दा इंतकाम था, कहे कोई तुम्हे तुमसा मिले
'अकाब' चाहे परवाह, मुझे उससे मिलने की आरजू थी |