मै शायर तो नहीं , मगर...
यादों ने पूछा, क्या उनसे मिल आऊ ?
मैं चूप रहा ।
पुराने पुल कबके गिर गये होंगे !
तुमसे कही हर बात शायरी होती थी,
आजकल लब्ज ढुंढनेमेही वक्त निकल जाता है !
ना जाने क्यों बादल बेमौसम बरस रहे है ।
उन लमहोंको तो मैने बस याद किया था ।
मेरी जिंदगी एक किताब है। इल्म नही वक्त का,
कब पन्ना पलट दे।
अरे व बडे बडे मंदिर मस्जिद बनानेवाले,
सुना है खुदा दिलमे भी रह लेता है.
मगर दिल बडा चाहिये.