मरासिम

उन खुदसर यादोंको जाने क्यों मनाता हूं

कुछ देर छुप जाए कही हररोज मनाता हूं


कमीयों के बावजूद तुझे उतनाही चाहता हूं

ख़यालोमे तेरे होनेका जश्न हररोज मनाता हूं


गुलपोशी में गुमी तेरी मसर्रत ढूंढता हु

अज़ली रातकी सुबह हररोज मनाता हु


परेशान मरासिम को क्या नाम दु सोचता हूं

गुजरे रिश्ते का अहसास हररोज मनाता हु




आरजू

समंदर के रेतसे साहिल पे, घर बनाने की आरजू थी

बहकी बहकी लहरोंसे, मुझे दिल्लगी की आरजू थी |


बहता गया इस जिंदगी के साथ, या फिर बहाया गया

तुझसे मुलाकात के बाद, मुझे किनारे की आरजू थी |


बुझा न दे कही ये हवाएं, काँपती लौ को छुपा दिया

जला क्यों हाथ मेरा, मुझे कसूर जानने की आरजू थी |


मीर का मुद्दा इंतकाम था, कहे कोई तुम्हे तुमसा मिले

'अकाब' चाहे परवाह, मुझे उससे मिलने की आरजू थी |




आस

झूठा ही सही एक बार मुझे मर के देखना था

जनाज़े में कौन होता है शामिल ये देखना था


हरदम जो जताते थे है दिल बडा दरिया हमारा

क्या ऑंखसे उनके समंदर बहेगा ये देखना था


ताउम्र बोझ उठाये कइयोंका, कंधा कौन देगा

कौन दोस्त और कौन दुश्मन, बस ये देखना था


हमेभी आपसे मुहोब्बत है वो बोल न सके कभी

आज उनके चेहरेपे इजहार ए इश्क़ देखना था


पता नही जीतेजी हमे क्यों याद करता था कोई

किसके दिलसे आज मेरा जनाजा उठा देखना था






अच्छी बात

मेरी तरफ देख तेरा मुस्कुराना अच्छी बात नहीं

मरे हुए नादानको और मारना अच्छी बात नहीं


हिसाब रखता हूं मैं तेरे साथ बिताए हर पलका 

वक्तकी तिश्नगीको प्यासा रखे अच्छी बात नहीं


दराज-तर सफर बहुत कठिन है मगर तेरे सिवा 

बिना कोशिश अलविदा कहना अच्छी बात नहीं


हूँ वाकिफ तेरे रूह के रग रग से ऐ मेरे हमनवा

पर मैं तुम्हें अबभी अनजान हु अच्छी बात नही



अरे वेड्या मना तळमळशी



अधिकार देणारा मी कोण?
देवाने सर्वांनाच मन दिलंय
प्रत्येक फुलाला सुगंध असतोच
ती जिवनाला आधार देतायत

तू बोलणार तरी किती?
शब्द नि:शब्द होईपर्यंतच ना!
प्रत्येक हसऱ्या मुकेपणा मागे
शेवटी एक गोड होकारच ना!

तू नाकारणार तरी काय?
आपलं प्रेम हे एकमेव सत्य आहे
हवं ते माग मी देईन ,
दु:ख कुठे सुखापासून वेगळं आहे?

काही छेडण्याची जरुरीच नाही,
हृदयाच्या तारानाच मी हात घातलाय
नाही म्हटलं तरी हा झंकार
तुझ्या रोमारोमात भरलाय

सुख दु:ख,
चंद्र तारे,
काही मनोरे,
काही कंगोरे,
काहीही आण
चालेल,
कारण ते मोठ्ठ स्वप्न,
फक्त दोघांच असेल.

सोचता हूँ

तेरे बारेमे मैं आजकल ज्यादाहि सोचता हूं
ख़्वाबभी बिन तेरे अधूरे है इतना सोचता हूं

फूल और भंवरा बाते जरूर करते होंगे
मिलके तुमसे क्या कहूँ अक्सर सोचता हूं

अगर कभी तुमसे नाराज हो भी जाऊं
यकीनन खामोशी चुप ना रहेगी सोचता हूं

तेरे मेरे आलम के बीच ये फलक है फैला
क्या रास आएंगे मरासिम इस जहां के सोचता हूं

'अकाब' उड़े पर के या जिद के भरोसे
जमीपर खड़ा मैं बेबस इंसान सोचता हूं



अर्सा

रात जाग रूमानी खत लिखे एक अर्सा हुआ
लफ़्जोंको कागज पे सजाके एक अर्सा हुआ

बाहों में घुलकर खामोश बैठा वक्त याद आया
तेरे चूड़ेमें सजे फ़ूल सुंगकर एक अर्सा हुआ

मर्मरी बदन और सुर्ख होठोंसे मैं बच तो पाया 
तेरे कातिल आँखोंके शिकार हुए एक अर्सा हुआ

हर मोडपे समय जरूरते बदलता चला गया
जिंदगी तूने मेरा नाम पुकारे एक अर्सा हुआ

वक्तका हिसाब हमे कभी समझ में न आया
लहरोने पैरों तले रेत बहाये एक अर्सा हुआ

दर्दके बोझ तले हर कदम जैसे आखरी था
'अकाब'ने ऊंची उड़ान भरे एक अर्सा हुआ

                                                   

आगोश

कभी तो बरसो बारिश की बुंदो की तरह
घुलजाओ रूहमे अनकही आरजू की तरह

करीब होते हुए भी फासले कितने मजबूर
मिलो राह पे चाहे एक अजनबी की तरह

मेरे वजूद की सबब अब बन गए हो तुम
आग़ोशमे आ साहिल और लहरो की तरह 

                                              

मागणे

मागणे

असे अचानक विचारलेस काय?
मला सोडून जाशील का कधी?
आणलेस डोळ्यांत पाणी, सांग मला
डाव असा सोडतात का अधी मधी

अपेक्षित नाही तुझाकडून काही
मात्र एकटेपणात साथ हवी
आज मी थोडा व्यथित आहे,
उद्या देईन, जे मागशील काहि.

थोडा धीर धर, जातील हे दिवस
काळ सुद्धा थांबेल क्षणभर
जगाच्या गर्दीत हरवलेल्या शांततेत,
तु असशील माझी, अन तुझा मी.


फासले

आप दूर क्या गए लफ्जो के साथ फासले हुए

तेरी याद आती रही फिर खुदसे ही फासले हुए


याद सदा आती है तुम्हेभी, हिचकिया हमे ये बताये

दिल अब भी है जुड़े पर बदन के बीच फासले हुए

                                                        

पायपुसणं

पायपुसणं

दररोज आम्हाला बेसुमार पिळलं जातं
आम्हाला वाईट वाटेल म्हणुन कि काय,
उदया परत वापरण्यासाठी,
वाळत 'टाकलं ' जातं

रेशमी धोतराचा कधी फडका होत नाही ,
पण चांगल्या साडीचा होऊ शकतो,
जिथे भावनाच निर्माल्य होऊ शकतात,
तिथे गुलाब काय घाणेरी सारखंच .




बोलु दे

बोलु दे

केसांच्या बटांना थोडेसे रुळु दे
गालावरच्या खळीला मग हसू दे
प्रेमात आपल्या तोच वसंत येऊ दे
जपलेल्या भावनांना ओठी बोलू दे.

संदुक


अचानक से याद आया

तो गंजीखाने मे पडी संदुक को खोला 

और उसके तले मे मिले

कुछ लम्हे मलमल के कपड़े में लपेटे हुए


केवड़े की खुशबू ने 

उन्हें कई साल बेहोश कर रखा था

अब मैं आ गया हूं

वरना इन्हें बस यादों का सहारा था


देखते मुझे लिपट लिए

रोने लगे बच्चे की तरह

जैसे अभी जन्मे हो 

और माँ से लिपट गए हो


आज भी उतनेही गुलाबी है

जितने कभी एक जमाने में होते थे

बस बढ़ गयी थी झुर्रिया

जो और उभर रही थी मुस्कुराने से


संदूक में और भी कुछ दिखा

समेटने उन्हें मेरे हाथ अपने आप बढ़े

लेकिन वो शर्माए यादोँसे ज्यादा

समझ गया ये वही थे आधे अधूरे वादे


वादे जो तुमने मुझसे 

और मैंने मुझसे किए थे

राह अंततक साथ चलने के

ये आखिर से उस आखिर तक


घबराए सहमेसे कोने में जा बैठे

शायद नाराज थे अपने आप से

कुछ पूरे नही होते तो कुछ

पूरे नही कर सकते, समझाया उन्हें


कुछ छोडना मुनासिब है 

आगे बढ़ने के लिये 

तो कई को निभाना

जरूरी है जीने के लिये


जो पिछे रह जाते है

वो बुरे नही होते

वापस मिलही जाते है

चाहे हो लम्हे, यादे, या फिर वादे !



सावरू दे

सावरू दे

पावसा थांब थोडा,
आवेग आवरू दे
बेहोश झाले आहे 
मनाला सावरू दे. 

येईल तो आज 
थोडेसे बहरू दे,
मन हरवले माझे,
पदर सावरू दे!
            
       


                             







कालचक्र

दिवस सरला झाली रात्र

अनंत फिरते हे कालचक्र

अंधाराच्या कुशीत उगवे

हळूच प्रणय राज sudhakar


वसंत जाऊनी ग्रीष्म आला

सोनफुलांनी बहावा सजला

हरेक झुबका उधळे रंग पिवळा

पर्णहीन वृक्षाने हरवला हिरवा


भेट प्रिये त्या झाडाखाली 

पुष्पवर्षाव वाट पाहे तुझी

बैस शेजारी कुसुम शय्येवरी

दोघ करू गुजगोष्टी रात्र सारी


मंद हवा स्पर्शानी भारावली

जादू तुझी की या चांदण्याची

वाटे संपूच नये हा बहर कधी

थांबेल का ही वेळ थोडीतरी


तू जाशील निघुन भल्यापहाटे

भेट आजची, झाले स्वप्न खरे

ऋतू मिलनाचा समीप आहे

अशी चोरून भेट शेवटची बरे !

                                              


जीवन मला लाभले


केले आहे प्रेम मी, देऊ किती दाखले 
ऐश्वर्य कुबेराचे, आज मला लाभले. 

न बोलता न सांगता, तुझीच मी झाले 
संपले दुःख तेही, सुख मला लाभले. 

नसशी जवळ तु, काही आठवले 
एकटे पण गोड, विरह मला लाभले. 

त्या कोवळ्या फुलांचे, स्पर्श सांगून गेले. 
मनात काही शोधता, ते क्षण मला लाभले 

न राहवून मी, आरशात पाहिले 
हरवलेले कधीचे, हास्य मला लाभले. 

भेटता तु वाटेवर, श्वास एक झाले 
उमलत्या आशेत, जीवन मला लाभले.


                                





घड़ी

मेरे दिलकी दुआ आज कौनसा रंग लायी है

दहलीज पार कर आज गझल घर आयी है | 


शमा बुझाओ, उसे जलने की जरुरत नहीं है 

रोशनीसे महकाने, आज नजम घर आयी है | 


अनगिनत तसव्वुर ख़यालोमे बेझिझक है

तू सामने है, तो दिमागने सोच क्यों खोयी है?


कुछ बाते करू या बस ये नूर देखता रहु मैं 

तेरे लबोने इन लब्जोंको ख़ामोशी सिखायी है | 


निगाह मिलाना चाहता हु, आँखे क्यों झुकी है 

चाँद ढकने कम्बख्त, अकेली झुल्फ आयी है !


रफ़्तार बहके इसकी, समय बड़ा बेईमान है 

ठहर थोड़ा, इश्क़के इम्तिहांकी घड़ी आयी है | 


अपने दरमियाँ के ये फासले ख़त्म क्यों नहीं होते 

मजबूर हालात तोड़ने ये मुनासिब घडी आयी है | 


बहकने दे 'अकाब' मुझे रोकना नामुमकिन है 

इन सवालोंसे, जवाब माँगने की बारी आयी है | 

                                                         





वक्त तो लगता है ....


रात बरसात की थी, और आँखे कुछ नम

भीगा चिराग जलने में, वक्त तो लगता है


उनको अपना बनाना, बात ये मुश्किल है

इक पत्थर घर बनने में, वक्त तो लगता है


बात जिनके दिल छू जाती, वही अपने है

आँख से आँसू बहने में, वक्त तो लगता है


लाख सौदे रोज होते है, इस दुनिया मे

सच्चा प्यार समझने में, वक़्त तो लगता है


इनकार का गम नही, तेरी मजबूरी का है

बेबस हालात समझने मे, वक्त तो लगता है


इस भीड़ में तनहा 'अकाब ' है तेरे बिना

खोने का डर मिटने मे, वक्त तो लगता है

                                                 

तोहफा


वक्त का मिला है तोहफा

वक्तसे न लूट पायेगा

कागज पे नाम जो लिखा

वक्तसे न मिट पायेगा


______________________



एक सवाल है छोटासा

जवाब क्या आएगा ?

सवाल तो तुम हो

सही जवाब ही आएगा


                                  




The right one

 


When you meet the right one,

Compromise turns into sweet sacrifice.

- P. K. 

मजदुर





दिनभर इस पेट के 
लिये काम करते है 
शरीर के बाकी अंग
रातमे याद आते है!

                              
          


सुधाकर

सर्व काही असून  सुद्धा 

तुजविन चित्र अपूर्ण आहे

सर्व काही नसूनही तू

असशील तर संपूर्ण आहे


जागेपणी तुझे आभास

कल्पना स्वप्न नोहे

खोट्याविना खऱ्याची

किंमत अपूर्ण आहे


हिंदोळ्यावर हुंदके

छाती दडपली आहे

लटक्या भांडणाविना

संवाद अपूर्ण आहे


गुंतवशील कसे मला

शब्द शब्द मूक आहे

मिठीशिवाय माझ्या

तुझा राग अपुर्ण आहे


रात्र पहाटेला मिळे

सुधाकर मावळूदे

भेट तुझी नी माझी 

अथवा अपूर्ण आहे


निघतेस मात्र जेव्हा

थांबवु तुला कसे

वेळ विचित्र आहे

काळ अपूर्ण आहे

                                 

  





रुबाई

 

गझल लिखू, पर समा बया कर नही सकता

तेरे बारेमे सोच सकु, पर तुझे पा नही सकता


ढूंढता हु नजदीक तेरे, न होने की वजह 

इजहार ऐ इश्क़ मगर, कर नही सकता


मलमली अहसास ही काफी है, पास होनेका

मजा नही बिन तेरे, बारिश में भीग नही सकता


शुक्रगुजार हूं जिंदगी ने कभी तुझसे मिलाया

एतराज़ है, मक़रूज़ हु, कर्ज चुका नही सकता


तू मेरी रुबाई है, सिवा तेरे न-मुकम्मल जीना

चाहना चाहता हु, मगर तुझे खो नही सकता






राही

अपना समझा, असल में पराये है

मेरे आँखोंके सपने, अब पराये है


तेरे इश्क़ से, हमे बेहद रश्क है

तेरे गली के रास्ते, अब पराये है


तमीज़ मेरे प्यार का अंदाज़ है

दुनिया के तरिके, हमे पराये है


हमसफर कम, अजनबी ज्यादा है

तेरा जहाँ,  मेरा आलम, पराये है


हम हिस्सा थे अतीत का, याद रहे

वक्त की बात है, राही भी पराये है


तेरी यादें तेरी बाते, अब भी जवा है

सिर्फ वो कुर्बत लम्हे, अब पराये है


शहर में हर कोई, अजनबीसा है

लुटे लुटाये हम, खुदसे पराये है


लब्ज ढूंढ रहा, बदनसीब 'अकाब' है

उफुक़ के लिए, सारे समन्दर पराये है


फर्क



Difference: Painting By Tejaswini Sahoo

  उड़ने का जज्बा एक जैसा है फिर 

  तेरा और मेरा आकाश अलग क्यों?

  जब हम परिंदे एक कोख से जन्मे 

  एक छत मगर पाबंदियां अलग क्यों?

  जिस्म नही दिमाग तय करे दायरे

  तो कश्मकश की वजह अलग क्यो?

  फूल एक डालके, महकना लाजमी है

  तेरी हँसी मेरी हँसी फिर अलग क्यो?

  मैं नियाज़ और क्यो तू नाज़ है?

  जमाना देखे, दो चश्मे अलग क्यो?


                                                                                                                    



Hamnashini



रुक जाता था हर बार,
एक मुलाकात के लिये
और वो मुडके देखे नही कभी !

थम जाता था हर बार,
उनका चेहरा देखने
और वो पर्दा उठाये नही कभी !

इरादा था मैं डुब जाऊ,
चाह-ए-जकन में तेरी
देख हमेवो मुस्कुराए नही कभी !

तरस रहा मुद्दत से,
कुछ तो कहिये हमसे
और वो लब खोले नही कभी  !

चाहता था छू लू उन्हें,
बजे दिलमे अबरेशम
कमबख्त मौका मिला नही कभी !

हो अगर पत्थर दिल तुम,
तो संग तराश हम भी है
और जिद हम छोड़े नही कभी !

जिसम की बात न थी,
मैं ढूंढ हमनशिनी रहा
और दुआ कबुल हुई नही कभी !




 

इमले

 

आपण मनात बांधत राहतो इमले

यावं करिन आणि त्याव होईल

पण घंटा काहीच कुठे होत नाही

एक कप चहाने तल्लफ मिटत नाही


निघताना असतो शर्ट इस्त्री केलेला

भांग व्यवस्थित, सेन्ट सुवासिक

गर्दीला यातलं काहीच कळत नाही

एखाद्या शिवीने भांडण मिटत नाही


घरदार असत बऱ्यापैकी आणि कुटुंब

आरामात भागतात दैनंदिन गरजा

मत्सर मात्र मनाला सोडावीत नाही

पुढे पळण्याची तहान काही मिटत नाही


तरुणपणी असते ढीगभर ऊर्जा

सळसळत रक्त, उर्मी, आणि ईर्षा

म्हातारपणाला कशाचा गंध नाही

पाहिजे तेव्हा मात्र डोळा मिटत नाही




खुदगर्ज़

उम्मीद पुख्ता हो तो तस्वीर बने शानदार

घुलने के बाद अक्सर, ये रंग बदल जाते है ।


लगाए कश्ति एक माहिर माझी साहिल पार

हौसले बुलंद रखो, ये मौसम बदल जाते है ।


मासूम बेरहम वक्तसे बड़ा न कोई जादूगर

तुम मेरा दिल परखो, ये चेहरे बदल जाते है ।


कामसे काम रखते है, परवाह उम्मीद न कर

समयकी बात है प्यारे, ये लोग बदल जाते है ।


खुदगर्ज दुनिया खिंची आये रुपिया देखकर 

जब हालात बिगड़े, तो ये रिश्ते बदल जाते है ।


जिस्म मुजस्सिम, बस तौसीफ है हमसफर

मिट्टी में मिलने के बाद ये मुर्दे बदल जाते है ।



इश्के दी चाशनी


कभी कभी मुझे तुम जलेबी की तरह लगती हो

चाश्नी में डूबी हुई सी, जब मुझसे बाते करती हो

हम मरकज़ चक्कर काटती हुई मेरे इर्द गिर्द (concentric)

मरोडनेपे जिसको, दिल से मानो प्यार बहता हो


तुम काजुकतली होने की संभावना ज्यादा है

वही एक है जो तुमसे सादगी सीखी है

उसकी दुनिया चाहे कितनीही गोलमटोल हो

लेकिन मेरे लिए त्रिकोनी हिरे जैसी है 


खीर होती है थोड़ी पतली थोड़ी गाढ़ी

ठीक वैसेही मिजाज जब तुम मुझे डाटती हो

मैं बस देखता हूं तेरी आँखोंको और सोचता हूं

केसर की तरह घुल जाऊ इस फिरनी में


बहुत कम देखा है तुम्हे शरमाते हुए

जब भी शरमाती हो, हाथोंसे चेहरा छुपाके

जैसे गुजिया के अंदर गुड़ का हो पूरण

और मेरे लब्ज घी का काम करते रहे ।


कभी मेरे लिए हो सोनपापड़ी 

तो कभी हो रंगबिरंगी बर्फी

या कहु रसभरी रसमलाई

या कहु मीठी ठंडी रबड़ी


नाम कई है तेरे दुनिया के लिए


मेरे लिए हो बस .....

इश्के दी चाशनी ।

                                       


सिंबा

 

धरती पे खुदा का क़ासिद है तू

मेरे लिए खुदासे बढ़कर है तू ।


तेरी खामोशी तेरी बेजुबानी है

तेरी जुबान तेरी दिल्लगी है ।


बेहद वफादारी तेरी कमजोरी है

इंसानी दुनिया आना तेरी भूल है।


पाकीजा दिल कभी आया हिस्से मेरे

नेक काम शायद हुए किसी जनम मेरे


मुहलत इतनी छोटी क्यो मिली तुम्हे

बगैर तेरे क्यों काटनी ये लंबी उम्र हमे


अगले जनम बन जाना तुम मेरे आका

कुछ तो कर्ज चुका सकु ये जिन्दगीका


बस कभी बात फुरकत की न कर तू

मेरे लिए, मुझसे, खुदासे, बढ़कर है तू ।

आहिस्ता

फूल नही रुत ए बहार लायी थी जिंदगी में

छोड़कर मुझे जाना है, जाइये आहिस्ता आहिस्ता ।


उम्र बित जाती है जहनको समझने में

आगाज़ ही उलझने बढा रहा है , आहिस्ता आहिस्ता ।


क्यो तुझसे दिलकशी, अनजान हु मैं

इंतज़ार अब जहर बन रहा है, आहिस्ता आहिस्ता ।


खुदा है करामाती, देर क्यों नतीजेमे

वक्त उम्मीद कोताह कर रहा है, आहिस्ता आहिस्ता ।


क्यो जवान यादोँसे रुक्सत करू तुम्हे

मुकाबला मौत जीतेगी तय है, पर आहिस्ता आहिस्ता ।

आश्ना


रात घनी, और शजर जुगनू भरा

तले उसके प्यार हमारा बाहों भरा। 


अहसास बने जेर-ए-लब सासोंका

तेरे होठोंका प्याला, मदहोशी भरा। 


सवारू चनबेली के फूल से लदा जुड़ा

साँसोमे भरलू महक, जिस्म खुशबू भरा। 


थामलु चेहरा हाथमे, फिर चुमलू माथा

एक वादा करलू आंखोसे, ऐतबार भरा। 


पलकोमे अश्क खूब सजा कर रखना 

जुदाई का हर लम्हा, तेरा तसव्वुर भरा। 


उजाला कर रहा रात को अलविदा

न जा, मेरा दिल तो अबभी नही भरा। 

                                                     

अक्स

 

देखते रहे , जब देखती हो आईना

सुना तेरे हुस्न के चर्चे, हर गली है। 


कौन खूबसूरत, तुम या अक्स जानुना

बहस कर रहा आशिक, हर गली है। 


जानलो, पूरा सच नही कहता आईना

बला की हसिन तुम हो, सुने हर गली है। 


अक्स का हकदार बन बैठा है आईना

हुस्न चोरी की फिराक में, कोई हर गली है। 


बेनकाब न निकलो बात मेरी ये मानना

बेवजह जान जाती, हर रोज, हर गली है। 


छत पर खड़े होकर बाल खुले न छोडना

चाँद देख ईद मनाने, तैयार हर गली है। 




तबदिल


काफुरि आशनाई का मैं कामिल सियाह

ऐ रंग रेज़, मत बदल छोटीसी मेरी दुनिया


आयत बने हमारे किस्से लिख रहा हु इंशा

तबदील आजमा मत, गोल है मेरी दुनिया 


सितारोंके आगे अनोखा होगा तेरा बसेरा 

मुनावरसे न बहका, नाजनी नही मेरी दुनिया


साकी गलत न समझ, जन्नत है ये मयखाना

तू नही, तेरे इश्क़ का जाम है मेरी दुनिया



फिक्र


सुबह सुबह 

घरके पीछे बग़ीचेमे 

थोई देर ही सही 

टहल लेता हु। 

कभी पानी देने के लिए ,

तो कभी बिनावजह। 


फिर ये ख्याल आता है

इन पेडोने कल ठंडभरी रात 

अकेले कैसे गुजारी होगी ?

जब मैं  कम्बल ओढ़े ,

इस सर्द मौसम में बाहर कैसे निकलू?

ये सोचते मन बना रहा था ,

तो कही ये मेरे इंतज़ार में 

डुबे तो नहीं थे न ?


जब तक हवा नहीं चलती 

सब आराम से सोते रहते है। 

धुप आनेतक ओस की बून्दोंसे 

नहाभी  लेते है 

और मै  हु उनका बावर्ची 

जो सुबह ब्रेकफास्ट लेके 

पहुंच जाता हु 

और सुनता हु उनकी शिकायते। 

शिकायत वही पुरानी 

ये हर रोज  आता नहीं। 


कुछ टहनिया लिपट भी जाती है 

मुझे फिर उनको हलके हातोंसे 

छुड़वाना पड़ता है 

अगर काटे हो तो 

थोड़े ज्यादाही सावधानी से 

लेकिन मै उनपर गुस्सा नहीं होता 

मुझे पता है ,

कसूरवार मै  ही हु। 


उन सूखे पत्तोंको वही ,

जमीपे छोड़ देता हु। 

जहा से जन्मे,

वही दफ़न हो 

और अगला जनम 

मेरे आँगन में हो। 


फ़ूलोंको छूता तक नहीं 

हम आखिर इंसान है 

और ये हात पाक बिलकुल नहीं 

लाख समझाने पर भी 

वो हमारा पीछा नहीं छोड़ते 

उनकी महक जब हमें 

छू के जाती है ,

कसमसे, यादें महका देती  है। 

अफ़सोस जताते है उनसे 

तुम तितलियोंके लिए बने हो ,

बालोंके जुड़े की 

उम्मीद मत रखना। 


सुखी टहनियोमे मुझे 

मेरा बुढ़ापा दिखाई देता है। 

फिर उन सूखे पेड़ोंको भी 

डालता हु पानी 

सोचकर कही कोई एक शाख ,

बाहर  निकलने की

फिराकमे न बैठी हो। 


चंद समय में मेरी जिम्मेदारी 

मानो ख़त्म होती है। 

एक बाप की तरह 

कर देता हु हवाले ,

उन जवान किरणोंके हाथ 

मन तो नहीं करता... 

पर पता होता है 

छाव में तो बचपन खिलता है 

धुप बनाती है -सवारती  है जिंदगी। 

अगले नस्ल को ,

एक नयी रूह देने के लिए। 


अगली सुबह फिर ,

यही सोचके ,

बगीचे में टहल आता हु ,

कही ये पेड़, फूल, पत्ते, 

मेरा इंतज़ार तो 

नहीं कर रहे थे न?



रोका न करो !


हर बात पर यकीन है, फिर भी

वादे थोड़े करो, पर निभाया करो


तुझे हम दिलके करीब रखे है

झूठा ही सही प्यार तो करो


चुप है, कारण तुमसे रुठ गए है

पर तुम बात हमसे किया करो !


तेरा चेहरा आंखोसे हटता नही

फिर भी तुम ख़्वाबोमे आया करो !


ये आंखे आज क्यो इतनी नम है

मेरे दिले गम से नाज़िर तो करो !


घर का आईना तेरा आशिक है

फुरसत से उसे अलविदा करो !


तेरे जिंदगी से दूर जाना चाहते है

पर तुम हमे कभी याद किया करो !


तेरा हात नही ले सकता हाथोंमें 

नजर मिलाने से मुझे रोका न करो !


किस्मत से मीटभी जाये फासले 

खुदा अगर है कही, उसे रोका न करो !




तुम हो कौन?

 

मेरा घर आज मुझसे पूछा, तुम हो कौन?

दिनके उजालेमे अर्सो बाद देखा, तुम हो कौन?


देर रात से आते, सुबह जल्दी निकल जाते हो,

चाँद तो नहीं, और नहीं शबीना, तुम हो कौन?         (निशाचर)


खोकली दिवारोंके रंग अब उड़ गए है 

दरवाज़े को ताला लगानेवाले, तुम हो कौन?


बगिया उजड़के कितने बरस बित  गए 

बहारकी तमन्ना रखनेवाले, तुम हो कौन?


इंतज़ार और सूनापन मालिक बन बैठे है 

वक़्त किराया है, पैसे फेंकनेवाले तुम हो कौन?


इंसान ही नहीं, कभी घर भी मरा करते है ,

पराये ख्वाबोंका क़त्ल करनेवाले, तुम हो कौन?



उड़ान

 

ये साकित आसमा, बे-हद है

उड़ान तेरे मनका दायरा है।  


चढ़ते सूरज से रुबरु करले ,

कामयाबी तेरी परछाई है  | 


उम्मीद के पर मजबूत तू कर ,

शहर की हवा थोड़ी खराब है | 


तू अक़ाब है , उंचाइसे न डर 

याद रहे, आखरी पड़ाव जमी है !

                                         




इश्क़ का नशा !


ऐ साकी, तू शराब पिला, दवा नही

ये इश्क़ है, बस एक रात का नशा नही।


गैर जिम्मे दाराना तेरी फितरत नही

ये इश्क़ है,  हमे बेदर्दीसे तोहमत नही ।


तू नही, तेरे बगैर ये राते रूमानी नही

ये इश्क़ है, खुदाकी कोई आरजू नही ।


सब कुछ तेरा, ये  दिल भी अब मेरा नही

ये इश्क़ है, एक खरीद ओ फरोक्त नही।


फैसले यही होंगे, हालात का इलाज नही

ये इश्क़ है, सुनाहै जन्नत में क़ाज़ी नही ।


जमाना खराब है, उससे कोई उम्मीद नही

ये इश्क़ है, तेरी रजामंदी जरूरी नही ।


                                                        

जब तक है जान

 


तेरी मुस्तक़िल हँसीसे

तेरी परवाहभरी बातोंसे

दुरुस्त लिहाज से, कातिल मिजाजसे

अंतसे परहेज था उन मुलाकातोंसे

मुहब्बत करूँगा मैं

जब तक है जान 

जब तक है जान 


तेरे बात छुपानेसे, दिलको दबाये रखनेसे

झूठी पाबंदीओसे, कड़वी बेरहमीसे

इस मजबूर दुरिसे

नामुमकिन रिश्तेसे

नफरत करूँगा मैं

जब तक है जान 

जब तक है जान


तेरे जिन्दादिलीसे

तेरे अहदे वफ़ा से

तेरे नजर झुकानेसे, झूठी ख़ामोशियोंसे, 

खयालोंको जो तूनेदी उस दमकशी से

मुहब्बत करूँगा मैं

जब तक है जान 

जब तक है जान





जश्न

टूटे आईनेको जोडकर एक तसविर बनाऊ

सैकड़ो अक्सोका का जश्न आज मैं मनाउ


खोया तुझे कई बार, अब रुक्सत न चाहू

तेरा जुनून मेंरा फितूर आज मै मनाउ


मंजिले जुदा है पर कुछ कदम साथ चलु

मुख़्तसर सफर जिंदगीभर मै मनाउ


मौसम बदलते रहेंगे, उन्हें न रोक सकु

तेरे जानेसे पहले  रुत ए बहार मै मनाउ


मोड़ बदलती रहती है जिंदगी, सोचु

और एक मुलाक़ात का जश्न कभी मै मनाउ




मैं शायर तो नही


1।

मेरे कुछ ख्वाब देखे मैंने,

बाजार घूमते हुए ।

खुश हुआ, उधार पे ही सही, 

जिंदा है ।


2।

राम ने राम किया बहुतोंको

कुछ नमकहराम अब भी बाकी है ।


3।

अंधेरेमे गुमी

परछाईको ढूंढ रहा था। 

वक़्तने कहा,

सुबह तो होने दो!


4.

कुछ लमहें बैठेथे 

खामोश अकेले दूर कोनेमे,

मैने पुछी वजह उनसे, बोले

हमारा वक्त गुजर गया ।


5। 

अहसास का लब्ज़ बनता

तो शायद वो तुम होती,

अगर ख़ामोशी कुछ कहती

वो तुम ही होती ।


6।

दिदार होताथा उनसे हररोज़,

पर नही आजकल,

वो खिड़की

हमेशा बंद रहती हैं ।


7।

सत्यका एक विशेषण 'अटल ' है ।

अटल ही अंतिम है ।


#श्रद्धांजली







मिलीभगत



हर रोज सुबह

मुझे बिना पुछे

वो सुरज की किरने

तुम्हे कैसे लिपट जाती है?

और गौरतलब है

तुम क्या खिल जाती हो।


कुछ उसी तरह

नहाने के बाद

वो पानी की बुंदे

तुम्हे नही छोडती

खैर कोई बात नही

गिले बाल मेरी कमजोरी है।


हवाओंको तो बस

चाहीये होता है बहाना

तुम्हारे साथ रहे

और करे मस्तीया

शायद वही तुम्हारी

हसी खिलाई रहती है 


तुम्हे बिलकुल पता नही

रात की चादर ओढे 

जब सो जाती हो

उस मासुम चेहरेके

भाव निहारने के लिये

मै रातभर जागता हू ।


और पता नही

इस सृष्टीके कितने

अनजान अनगिनत

तत्व तुम्हे आजभी

तराशे जा रहे है

शायद तुमसे अभी तक

खुदाका मन भरा नही।



और कुछ?

ऊन जखमोंको भरने केलीये

तुम्हारा एक आसू काफी है

पर हमने तो तुम्हे रोते देखा नही

क्या अबभी कूछ सितम बाकी है?


इस इंतजार के आईनेमे

तुम्हारा एक दीदार काफी है

पर हमतो बस राह देखते रह गये

क्या आज रात अमावसकी है?


इस रुखी रुखी जिंदगी मे

आप हमे याद करना ही काफी है

पर हम करते है  इश्क बेइतहा तुमसे

क्या धडकने किसीं के लिये रूकी है?



शब्दकथा

 

शब्द येऊन सांगतात आत्मकथा 

माझे काम फक्त लिहिण्या पुरते 

सत्य - कलेचा संबंध योगायोगाचा 

मी जाणतो हे वाक्य बोलण्यापुरते 


होतात रिते वाहावून भावना 

कळत नाही कधी हि रात्र सरते 

म्हणतात नवी पहाट नवी आशा 

मी जाणतो हे नाटक दिवसापुरते 


एखाद दिवशी होतात अबोल 

अश्रुंशिवाय काही न स्फुटते 

काय म्हणावे मला कळत नाही 

मी जाणतो हे भाव शब्दांपलीकडले


येता उबग यमक जोडण्याचा

भाषा मग मरणाची चालते 

वेळ येते तुझ्या निरोपाची

मी जाणतो हे विचार बरे नव्हे




फरमाइश


अँधेरे में एक हसीं रात के साथ अल्फाज इश्क़ फर्मा रहे हो, 

और आपकी अज़ीज़ आपसे  कहे , 

"कुछ सुनाईये न !"

तब वो फरमाइश 

ठुकराई नहीं जा सकती !


फरमाइश (Request)


लब्जोंको जोडके नशीले ख़ाब बुनलु 

कोई गझल मैं लिख दू, फरमाइश तो कीजिये  


होठोंका काम कुछ और है, बात रोके नहीं 

करदु हर आरजू  पुरी, फरमाइश तो कीजिये  (wish)


हर सहर, ओस के कतरोंको समेटलू  (Morning, Dew drops)

तेरे आँचल मोती भरु, फरमाइश तो कीजिये  


चौदहवीके चांदसे लोग करते है तेरी बराबरी 

चाँदको फना करदु,  फरमाइश तो कीजिये  (destroy)


ऐ  साकी, अब शराब का नशा चढ़ता नहीं  (a loved lady)

तेरे आंखोके जाम पीलू, फरमाइश तो कीजिये  


हर रोज जान लेती हो मेरी थोड़ी थोड़ी 

तेरे जानोमे दम तोडदु , फरमाइश तो कीजिये   (Lap )