मिलीभगत



हर रोज सुबह

मुझे बिना पुछे

वो सुरज की किरने

तुम्हे कैसे लिपट जाती है?

और गौरतलब है

तुम क्या खिल जाती हो।


कुछ उसी तरह

नहाने के बाद

वो पानी की बुंदे

तुम्हे नही छोडती

खैर कोई बात नही

गिले बाल मेरी कमजोरी है।


हवाओंको तो बस

चाहीये होता है बहाना

तुम्हारे साथ रहे

और करे मस्तीया

शायद वही तुम्हारी

हसी खिलाई रहती है 


तुम्हे बिलकुल पता नही

रात की चादर ओढे 

जब सो जाती हो

उस मासुम चेहरेके

भाव निहारने के लिये

मै रातभर जागता हू ।


और पता नही

इस सृष्टीके कितने

अनजान अनगिनत

तत्व तुम्हे आजभी

तराशे जा रहे है

शायद तुमसे अभी तक

खुदाका मन भरा नही।



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