बाते


काश मै तुम्हारा मन पढ पाता

साथमे बैठके उससे,

कुछ बाते कर पाता,

पुछता उससे वो अनगिनत राझ 

जो तुम्हारी आंखे ,

कभी बताने वाली नही | 


उतर जाता इन 

गहरी भूरी आंखोमे 

ढूंढते इस नमी का कारण। 

पहुंच जाता दिल के उस कोनेमे 

जहा कुछ गिलापन है मौजूद 

मुझे यकीं है, है मेरे लिए | 


जान जाता मुस्कुराहाट के पिछे छुपी 

आहटोंके  बारेमे।

जो किसिने सुनी नही

या उसने सिर्फ सीखा है,

दुसरोंके दर्द बटोरना ?


आईने के सामने जब खडी होती हो,

पता कर लेता उन ख्यालोंको,

और हलके से सवाल करता,

क्या मैं भी शामिल हू उसमे ?


घुम आता उसके साथ ,

वो तमाम गलीया,

लग रही है जो अंधेरेसे भरी,

खोज लेता चंद यादगार लमहें,

जो गलतीसे इनमे गुम हुऐ है  | 


सूनके वो सारी बाते,

जो कभी किसिने नही सुनी,

बोझ हलका कर देता तब,

जब मै तुम्हारा मन पढ पाता।

साथमे बैठके उससे,

कुछ बाते कर पाता  | 






No comments:

Post a Comment

Thank you for visiting !