तेरे बारेमे मैं आजकल ज्यादाहि सोचता हूं
ख़्वाबभी बिन तेरे अधूरे है इतना सोचता हूं
फूल और भंवरा बाते जरूर करते होंगे
मिलके तुमसे क्या कहूँ अक्सर सोचता हूं
अगर कभी तुमसे नाराज हो भी जाऊं
यकीनन खामोशी चुप ना रहेगी सोचता हूं
तेरे मेरे आलम के बीच ये फलक है फैला
क्या रास आएंगे मरासिम इस जहां के सोचता हूं
'अकाब' उड़े पर के या जिद के भरोसे
जमीपर खड़ा मैं बेबस इंसान सोचता हूं
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