आहिस्ता

फूल नही रुत ए बहार लायी थी जिंदगी में

छोड़कर मुझे जाना है, जाइये आहिस्ता आहिस्ता ।


उम्र बित जाती है जहनको समझने में

आगाज़ ही उलझने बढा रहा है , आहिस्ता आहिस्ता ।


क्यो तुझसे दिलकशी, अनजान हु मैं

इंतज़ार अब जहर बन रहा है, आहिस्ता आहिस्ता ।


खुदा है करामाती, देर क्यों नतीजेमे

वक्त उम्मीद कोताह कर रहा है, आहिस्ता आहिस्ता ।


क्यो जवान यादोँसे रुक्सत करू तुम्हे

मुकाबला मौत जीतेगी तय है, पर आहिस्ता आहिस्ता ।

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