रुक जाता था हर बार,
एक मुलाकात के लिये
और वो मुडके देखे नही कभी !
थम जाता था हर बार,
उनका चेहरा देखने
और वो पर्दा उठाये नही कभी !
इरादा था मैं डुब जाऊ,
चाह-ए-जकन में तेरी
देख हमेवो मुस्कुराए नही कभी !
तरस रहा मुद्दत से,
कुछ तो कहिये हमसे
और वो लब खोले नही कभी !
चाहता था छू लू उन्हें,
बजे दिलमे अबरेशम
कमबख्त मौका मिला नही कभी !
हो अगर पत्थर दिल तुम,
तो संग तराश हम भी है
और जिद हम छोड़े नही कभी !
जिसम की बात न थी,
मैं ढूंढ हमनशिनी रहा
और दुआ कबुल हुई नही कभी !
शाम से आंख मे नमी सी है
ReplyDeleteआज फिर आप की कमी सी है.... सारखे फिलिंग येते वाचून
:-) Dhanyawaad
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