एक नयी शुरुआत

मुद्दतों बाद किसी की फर्माइश आयी है 

लफ्जोंको फिरसे बुनने की घडी आयी है 


बातों-बातों में खो जानेकी ख्वाहिश जगी है 

वक़्त ने मानो यहीं ठिठकने की घडी आयी है


हर रात तेरी बातों में सूलझने लगी है 

कुछ रोज और, मुलाकात की घडी आयी है 


तु नहीं थी तो खुदसेही होती थी बातें 

हर सुबह शामके इंतजारकी घडी आयी हैं 


तुझसे मिलके लगा जैसे खुदसे ही मिला हूँ 

जालिम फासलोको मिटाने की घडी आयी है 


- परेश 



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