कालचक्र

दिवस सरला झाली रात्र

अनंत फिरते हे कालचक्र

अंधाराच्या कुशीत उगवे

हळूच प्रणय राज sudhakar


वसंत जाऊनी ग्रीष्म आला

सोनफुलांनी बहावा सजला

हरेक झुबका उधळे रंग पिवळा

पर्णहीन वृक्षाने हरवला हिरवा


भेट प्रिये त्या झाडाखाली 

पुष्पवर्षाव वाट पाहे तुझी

बैस शेजारी कुसुम शय्येवरी

दोघ करू गुजगोष्टी रात्र सारी


मंद हवा स्पर्शानी भारावली

जादू तुझी की या चांदण्याची

वाटे संपूच नये हा बहर कधी

थांबेल का ही वेळ थोडीतरी


तू जाशील निघुन भल्यापहाटे

भेट आजची, झाले स्वप्न खरे

ऋतू मिलनाचा समीप आहे

अशी चोरून भेट शेवटची बरे !

                                              


जीवन मला लाभले


केले आहे प्रेम मी, देऊ किती दाखले 
ऐश्वर्य कुबेराचे, आज मला लाभले. 

न बोलता न सांगता, तुझीच मी झाले 
संपले दुःख तेही, सुख मला लाभले. 

नसशी जवळ तु, काही आठवले 
एकटे पण गोड, विरह मला लाभले. 

त्या कोवळ्या फुलांचे, स्पर्श सांगून गेले. 
मनात काही शोधता, ते क्षण मला लाभले 

न राहवून मी, आरशात पाहिले 
हरवलेले कधीचे, हास्य मला लाभले. 

भेटता तु वाटेवर, श्वास एक झाले 
उमलत्या आशेत, जीवन मला लाभले.


                                





घड़ी

मेरे दिलकी दुआ आज कौनसा रंग लायी है

दहलीज पार कर आज गझल घर आयी है | 


शमा बुझाओ, उसे जलने की जरुरत नहीं है 

रोशनीसे महकाने, आज नजम घर आयी है | 


अनगिनत तसव्वुर ख़यालोमे बेझिझक है

तू सामने है, तो दिमागने सोच क्यों खोयी है?


कुछ बाते करू या बस ये नूर देखता रहु मैं 

तेरे लबोने इन लब्जोंको ख़ामोशी सिखायी है | 


निगाह मिलाना चाहता हु, आँखे क्यों झुकी है 

चाँद ढकने कम्बख्त, अकेली झुल्फ आयी है !


रफ़्तार बहके इसकी, समय बड़ा बेईमान है 

ठहर थोड़ा, इश्क़के इम्तिहांकी घड़ी आयी है | 


अपने दरमियाँ के ये फासले ख़त्म क्यों नहीं होते 

मजबूर हालात तोड़ने ये मुनासिब घडी आयी है | 


बहकने दे 'अकाब' मुझे रोकना नामुमकिन है 

इन सवालोंसे, जवाब माँगने की बारी आयी है | 

                                                         





वक्त तो लगता है ....


रात बरसात की थी, और आँखे कुछ नम

भीगा चिराग जलने में, वक्त तो लगता है


उनको अपना बनाना, बात ये मुश्किल है

इक पत्थर घर बनने में, वक्त तो लगता है


बात जिनके दिल छू जाती, वही अपने है

आँख से आँसू बहने में, वक्त तो लगता है


लाख सौदे रोज होते है, इस दुनिया मे

सच्चा प्यार समझने में, वक़्त तो लगता है


इनकार का गम नही, तेरी मजबूरी का है

बेबस हालात समझने मे, वक्त तो लगता है


इस भीड़ में तनहा 'अकाब ' है तेरे बिना

खोने का डर मिटने मे, वक्त तो लगता है

                                                 

तोहफा


वक्त का मिला है तोहफा

वक्तसे न लूट पायेगा

कागज पे नाम जो लिखा

वक्तसे न मिट पायेगा


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एक सवाल है छोटासा

जवाब क्या आएगा ?

सवाल तो तुम हो

सही जवाब ही आएगा


                                  




The right one

 


When you meet the right one,

Compromise turns into sweet sacrifice.

- P. K. 

मजदुर





दिनभर इस पेट के 
लिये काम करते है 
शरीर के बाकी अंग
रातमे याद आते है!

                              
          


सुधाकर

सर्व काही असून  सुद्धा 

तुजविन चित्र अपूर्ण आहे

सर्व काही नसूनही तू

असशील तर संपूर्ण आहे


जागेपणी तुझे आभास

कल्पना स्वप्न नोहे

खोट्याविना खऱ्याची

किंमत अपूर्ण आहे


हिंदोळ्यावर हुंदके

छाती दडपली आहे

लटक्या भांडणाविना

संवाद अपूर्ण आहे


गुंतवशील कसे मला

शब्द शब्द मूक आहे

मिठीशिवाय माझ्या

तुझा राग अपुर्ण आहे


रात्र पहाटेला मिळे

सुधाकर मावळूदे

भेट तुझी नी माझी 

अथवा अपूर्ण आहे


निघतेस मात्र जेव्हा

थांबवु तुला कसे

वेळ विचित्र आहे

काळ अपूर्ण आहे

                                 

  





रुबाई

 

गझल लिखू, पर समा बया कर नही सकता

तेरे बारेमे सोच सकु, पर तुझे पा नही सकता


ढूंढता हु नजदीक तेरे, न होने की वजह 

इजहार ऐ इश्क़ मगर, कर नही सकता


मलमली अहसास ही काफी है, पास होनेका

मजा नही बिन तेरे, बारिश में भीग नही सकता


शुक्रगुजार हूं जिंदगी ने कभी तुझसे मिलाया

एतराज़ है, मक़रूज़ हु, कर्ज चुका नही सकता


तू मेरी रुबाई है, सिवा तेरे न-मुकम्मल जीना

चाहना चाहता हु, मगर तुझे खो नही सकता






राही

अपना समझा, असल में पराये है

मेरे आँखोंके सपने, अब पराये है


तेरे इश्क़ से, हमे बेहद रश्क है

तेरे गली के रास्ते, अब पराये है


तमीज़ मेरे प्यार का अंदाज़ है

दुनिया के तरिके, हमे पराये है


हमसफर कम, अजनबी ज्यादा है

तेरा जहाँ,  मेरा आलम, पराये है


हम हिस्सा थे अतीत का, याद रहे

वक्त की बात है, राही भी पराये है


तेरी यादें तेरी बाते, अब भी जवा है

सिर्फ वो कुर्बत लम्हे, अब पराये है


शहर में हर कोई, अजनबीसा है

लुटे लुटाये हम, खुदसे पराये है


लब्ज ढूंढ रहा, बदनसीब 'अकाब' है

उफुक़ के लिए, सारे समन्दर पराये है


फर्क



Difference: Painting By Tejaswini Sahoo

  उड़ने का जज्बा एक जैसा है फिर 

  तेरा और मेरा आकाश अलग क्यों?

  जब हम परिंदे एक कोख से जन्मे 

  एक छत मगर पाबंदियां अलग क्यों?

  जिस्म नही दिमाग तय करे दायरे

  तो कश्मकश की वजह अलग क्यो?

  फूल एक डालके, महकना लाजमी है

  तेरी हँसी मेरी हँसी फिर अलग क्यो?

  मैं नियाज़ और क्यो तू नाज़ है?

  जमाना देखे, दो चश्मे अलग क्यो?


                                                                                                                    



Hamnashini



रुक जाता था हर बार,
एक मुलाकात के लिये
और वो मुडके देखे नही कभी !

थम जाता था हर बार,
उनका चेहरा देखने
और वो पर्दा उठाये नही कभी !

इरादा था मैं डुब जाऊ,
चाह-ए-जकन में तेरी
देख हमेवो मुस्कुराए नही कभी !

तरस रहा मुद्दत से,
कुछ तो कहिये हमसे
और वो लब खोले नही कभी  !

चाहता था छू लू उन्हें,
बजे दिलमे अबरेशम
कमबख्त मौका मिला नही कभी !

हो अगर पत्थर दिल तुम,
तो संग तराश हम भी है
और जिद हम छोड़े नही कभी !

जिसम की बात न थी,
मैं ढूंढ हमनशिनी रहा
और दुआ कबुल हुई नही कभी !




 

इमले

 

आपण मनात बांधत राहतो इमले

यावं करिन आणि त्याव होईल

पण घंटा काहीच कुठे होत नाही

एक कप चहाने तल्लफ मिटत नाही


निघताना असतो शर्ट इस्त्री केलेला

भांग व्यवस्थित, सेन्ट सुवासिक

गर्दीला यातलं काहीच कळत नाही

एखाद्या शिवीने भांडण मिटत नाही


घरदार असत बऱ्यापैकी आणि कुटुंब

आरामात भागतात दैनंदिन गरजा

मत्सर मात्र मनाला सोडावीत नाही

पुढे पळण्याची तहान काही मिटत नाही


तरुणपणी असते ढीगभर ऊर्जा

सळसळत रक्त, उर्मी, आणि ईर्षा

म्हातारपणाला कशाचा गंध नाही

पाहिजे तेव्हा मात्र डोळा मिटत नाही