खुदगर्ज़

उम्मीद पुख्ता हो तो तस्वीर बने शानदार

घुलने के बाद अक्सर, ये रंग बदल जाते है ।


लगाए कश्ति एक माहिर माझी साहिल पार

हौसले बुलंद रखो, ये मौसम बदल जाते है ।


मासूम बेरहम वक्तसे बड़ा न कोई जादूगर

तुम मेरा दिल परखो, ये चेहरे बदल जाते है ।


कामसे काम रखते है, परवाह उम्मीद न कर

समयकी बात है प्यारे, ये लोग बदल जाते है ।


खुदगर्ज दुनिया खिंची आये रुपिया देखकर 

जब हालात बिगड़े, तो ये रिश्ते बदल जाते है ।


जिस्म मुजस्सिम, बस तौसीफ है हमसफर

मिट्टी में मिलने के बाद ये मुर्दे बदल जाते है ।



इश्के दी चाशनी


कभी कभी मुझे तुम जलेबी की तरह लगती हो

चाश्नी में डूबी हुई सी, जब मुझसे बाते करती हो

हम मरकज़ चक्कर काटती हुई मेरे इर्द गिर्द (concentric)

मरोडनेपे जिसको, दिल से मानो प्यार बहता हो


तुम काजुकतली होने की संभावना ज्यादा है

वही एक है जो तुमसे सादगी सीखी है

उसकी दुनिया चाहे कितनीही गोलमटोल हो

लेकिन मेरे लिए त्रिकोनी हिरे जैसी है 


खीर होती है थोड़ी पतली थोड़ी गाढ़ी

ठीक वैसेही मिजाज जब तुम मुझे डाटती हो

मैं बस देखता हूं तेरी आँखोंको और सोचता हूं

केसर की तरह घुल जाऊ इस फिरनी में


बहुत कम देखा है तुम्हे शरमाते हुए

जब भी शरमाती हो, हाथोंसे चेहरा छुपाके

जैसे गुजिया के अंदर गुड़ का हो पूरण

और मेरे लब्ज घी का काम करते रहे ।


कभी मेरे लिए हो सोनपापड़ी 

तो कभी हो रंगबिरंगी बर्फी

या कहु रसभरी रसमलाई

या कहु मीठी ठंडी रबड़ी


नाम कई है तेरे दुनिया के लिए


मेरे लिए हो बस .....

इश्के दी चाशनी ।

                                       


सिंबा

 

धरती पे खुदा का क़ासिद है तू

मेरे लिए खुदासे बढ़कर है तू ।


तेरी खामोशी तेरी बेजुबानी है

तेरी जुबान तेरी दिल्लगी है ।


बेहद वफादारी तेरी कमजोरी है

इंसानी दुनिया आना तेरी भूल है।


पाकीजा दिल कभी आया हिस्से मेरे

नेक काम शायद हुए किसी जनम मेरे


मुहलत इतनी छोटी क्यो मिली तुम्हे

बगैर तेरे क्यों काटनी ये लंबी उम्र हमे


अगले जनम बन जाना तुम मेरे आका

कुछ तो कर्ज चुका सकु ये जिन्दगीका


बस कभी बात फुरकत की न कर तू

मेरे लिए, मुझसे, खुदासे, बढ़कर है तू ।

आहिस्ता

फूल नही रुत ए बहार लायी थी जिंदगी में

छोड़कर मुझे जाना है, जाइये आहिस्ता आहिस्ता ।


उम्र बित जाती है जहनको समझने में

आगाज़ ही उलझने बढा रहा है , आहिस्ता आहिस्ता ।


क्यो तुझसे दिलकशी, अनजान हु मैं

इंतज़ार अब जहर बन रहा है, आहिस्ता आहिस्ता ।


खुदा है करामाती, देर क्यों नतीजेमे

वक्त उम्मीद कोताह कर रहा है, आहिस्ता आहिस्ता ।


क्यो जवान यादोँसे रुक्सत करू तुम्हे

मुकाबला मौत जीतेगी तय है, पर आहिस्ता आहिस्ता ।

आश्ना


रात घनी, और शजर जुगनू भरा

तले उसके प्यार हमारा बाहों भरा। 


अहसास बने जेर-ए-लब सासोंका

तेरे होठोंका प्याला, मदहोशी भरा। 


सवारू चनबेली के फूल से लदा जुड़ा

साँसोमे भरलू महक, जिस्म खुशबू भरा। 


थामलु चेहरा हाथमे, फिर चुमलू माथा

एक वादा करलू आंखोसे, ऐतबार भरा। 


पलकोमे अश्क खूब सजा कर रखना 

जुदाई का हर लम्हा, तेरा तसव्वुर भरा। 


उजाला कर रहा रात को अलविदा

न जा, मेरा दिल तो अबभी नही भरा। 

                                                     

अक्स

 

देखते रहे , जब देखती हो आईना

सुना तेरे हुस्न के चर्चे, हर गली है। 


कौन खूबसूरत, तुम या अक्स जानुना

बहस कर रहा आशिक, हर गली है। 


जानलो, पूरा सच नही कहता आईना

बला की हसिन तुम हो, सुने हर गली है। 


अक्स का हकदार बन बैठा है आईना

हुस्न चोरी की फिराक में, कोई हर गली है। 


बेनकाब न निकलो बात मेरी ये मानना

बेवजह जान जाती, हर रोज, हर गली है। 


छत पर खड़े होकर बाल खुले न छोडना

चाँद देख ईद मनाने, तैयार हर गली है। 




तबदिल


काफुरि आशनाई का मैं कामिल सियाह

ऐ रंग रेज़, मत बदल छोटीसी मेरी दुनिया


आयत बने हमारे किस्से लिख रहा हु इंशा

तबदील आजमा मत, गोल है मेरी दुनिया 


सितारोंके आगे अनोखा होगा तेरा बसेरा 

मुनावरसे न बहका, नाजनी नही मेरी दुनिया


साकी गलत न समझ, जन्नत है ये मयखाना

तू नही, तेरे इश्क़ का जाम है मेरी दुनिया



फिक्र


सुबह सुबह 

घरके पीछे बग़ीचेमे 

थोई देर ही सही 

टहल लेता हु। 

कभी पानी देने के लिए ,

तो कभी बिनावजह। 


फिर ये ख्याल आता है

इन पेडोने कल ठंडभरी रात 

अकेले कैसे गुजारी होगी ?

जब मैं  कम्बल ओढ़े ,

इस सर्द मौसम में बाहर कैसे निकलू?

ये सोचते मन बना रहा था ,

तो कही ये मेरे इंतज़ार में 

डुबे तो नहीं थे न ?


जब तक हवा नहीं चलती 

सब आराम से सोते रहते है। 

धुप आनेतक ओस की बून्दोंसे 

नहाभी  लेते है 

और मै  हु उनका बावर्ची 

जो सुबह ब्रेकफास्ट लेके 

पहुंच जाता हु 

और सुनता हु उनकी शिकायते। 

शिकायत वही पुरानी 

ये हर रोज  आता नहीं। 


कुछ टहनिया लिपट भी जाती है 

मुझे फिर उनको हलके हातोंसे 

छुड़वाना पड़ता है 

अगर काटे हो तो 

थोड़े ज्यादाही सावधानी से 

लेकिन मै उनपर गुस्सा नहीं होता 

मुझे पता है ,

कसूरवार मै  ही हु। 


उन सूखे पत्तोंको वही ,

जमीपे छोड़ देता हु। 

जहा से जन्मे,

वही दफ़न हो 

और अगला जनम 

मेरे आँगन में हो। 


फ़ूलोंको छूता तक नहीं 

हम आखिर इंसान है 

और ये हात पाक बिलकुल नहीं 

लाख समझाने पर भी 

वो हमारा पीछा नहीं छोड़ते 

उनकी महक जब हमें 

छू के जाती है ,

कसमसे, यादें महका देती  है। 

अफ़सोस जताते है उनसे 

तुम तितलियोंके लिए बने हो ,

बालोंके जुड़े की 

उम्मीद मत रखना। 


सुखी टहनियोमे मुझे 

मेरा बुढ़ापा दिखाई देता है। 

फिर उन सूखे पेड़ोंको भी 

डालता हु पानी 

सोचकर कही कोई एक शाख ,

बाहर  निकलने की

फिराकमे न बैठी हो। 


चंद समय में मेरी जिम्मेदारी 

मानो ख़त्म होती है। 

एक बाप की तरह 

कर देता हु हवाले ,

उन जवान किरणोंके हाथ 

मन तो नहीं करता... 

पर पता होता है 

छाव में तो बचपन खिलता है 

धुप बनाती है -सवारती  है जिंदगी। 

अगले नस्ल को ,

एक नयी रूह देने के लिए। 


अगली सुबह फिर ,

यही सोचके ,

बगीचे में टहल आता हु ,

कही ये पेड़, फूल, पत्ते, 

मेरा इंतज़ार तो 

नहीं कर रहे थे न?



रोका न करो !


हर बात पर यकीन है, फिर भी

वादे थोड़े करो, पर निभाया करो


तुझे हम दिलके करीब रखे है

झूठा ही सही प्यार तो करो


चुप है, कारण तुमसे रुठ गए है

पर तुम बात हमसे किया करो !


तेरा चेहरा आंखोसे हटता नही

फिर भी तुम ख़्वाबोमे आया करो !


ये आंखे आज क्यो इतनी नम है

मेरे दिले गम से नाज़िर तो करो !


घर का आईना तेरा आशिक है

फुरसत से उसे अलविदा करो !


तेरे जिंदगी से दूर जाना चाहते है

पर तुम हमे कभी याद किया करो !


तेरा हात नही ले सकता हाथोंमें 

नजर मिलाने से मुझे रोका न करो !


किस्मत से मीटभी जाये फासले 

खुदा अगर है कही, उसे रोका न करो !




तुम हो कौन?

 

मेरा घर आज मुझसे पूछा, तुम हो कौन?

दिनके उजालेमे अर्सो बाद देखा, तुम हो कौन?


देर रात से आते, सुबह जल्दी निकल जाते हो,

चाँद तो नहीं, और नहीं शबीना, तुम हो कौन?         (निशाचर)


खोकली दिवारोंके रंग अब उड़ गए है 

दरवाज़े को ताला लगानेवाले, तुम हो कौन?


बगिया उजड़के कितने बरस बित  गए 

बहारकी तमन्ना रखनेवाले, तुम हो कौन?


इंतज़ार और सूनापन मालिक बन बैठे है 

वक़्त किराया है, पैसे फेंकनेवाले तुम हो कौन?


इंसान ही नहीं, कभी घर भी मरा करते है ,

पराये ख्वाबोंका क़त्ल करनेवाले, तुम हो कौन?



उड़ान

 

ये साकित आसमा, बे-हद है

उड़ान तेरे मनका दायरा है।  


चढ़ते सूरज से रुबरु करले ,

कामयाबी तेरी परछाई है  | 


उम्मीद के पर मजबूत तू कर ,

शहर की हवा थोड़ी खराब है | 


तू अक़ाब है , उंचाइसे न डर 

याद रहे, आखरी पड़ाव जमी है !

                                         




इश्क़ का नशा !


ऐ साकी, तू शराब पिला, दवा नही

ये इश्क़ है, बस एक रात का नशा नही।


गैर जिम्मे दाराना तेरी फितरत नही

ये इश्क़ है,  हमे बेदर्दीसे तोहमत नही ।


तू नही, तेरे बगैर ये राते रूमानी नही

ये इश्क़ है, खुदाकी कोई आरजू नही ।


सब कुछ तेरा, ये  दिल भी अब मेरा नही

ये इश्क़ है, एक खरीद ओ फरोक्त नही।


फैसले यही होंगे, हालात का इलाज नही

ये इश्क़ है, सुनाहै जन्नत में क़ाज़ी नही ।


जमाना खराब है, उससे कोई उम्मीद नही

ये इश्क़ है, तेरी रजामंदी जरूरी नही ।


                                                        

जब तक है जान

 


तेरी मुस्तक़िल हँसीसे

तेरी परवाहभरी बातोंसे

दुरुस्त लिहाज से, कातिल मिजाजसे

अंतसे परहेज था उन मुलाकातोंसे

मुहब्बत करूँगा मैं

जब तक है जान 

जब तक है जान 


तेरे बात छुपानेसे, दिलको दबाये रखनेसे

झूठी पाबंदीओसे, कड़वी बेरहमीसे

इस मजबूर दुरिसे

नामुमकिन रिश्तेसे

नफरत करूँगा मैं

जब तक है जान 

जब तक है जान


तेरे जिन्दादिलीसे

तेरे अहदे वफ़ा से

तेरे नजर झुकानेसे, झूठी ख़ामोशियोंसे, 

खयालोंको जो तूनेदी उस दमकशी से

मुहब्बत करूँगा मैं

जब तक है जान 

जब तक है जान





जश्न

टूटे आईनेको जोडकर एक तसविर बनाऊ

सैकड़ो अक्सोका का जश्न आज मैं मनाउ


खोया तुझे कई बार, अब रुक्सत न चाहू

तेरा जुनून मेंरा फितूर आज मै मनाउ


मंजिले जुदा है पर कुछ कदम साथ चलु

मुख़्तसर सफर जिंदगीभर मै मनाउ


मौसम बदलते रहेंगे, उन्हें न रोक सकु

तेरे जानेसे पहले  रुत ए बहार मै मनाउ


मोड़ बदलती रहती है जिंदगी, सोचु

और एक मुलाक़ात का जश्न कभी मै मनाउ




मैं शायर तो नही


1।

मेरे कुछ ख्वाब देखे मैंने,

बाजार घूमते हुए ।

खुश हुआ, उधार पे ही सही, 

जिंदा है ।


2।

राम ने राम किया बहुतोंको

कुछ नमकहराम अब भी बाकी है ।


3।

अंधेरेमे गुमी

परछाईको ढूंढ रहा था। 

वक़्तने कहा,

सुबह तो होने दो!


4.

कुछ लमहें बैठेथे 

खामोश अकेले दूर कोनेमे,

मैने पुछी वजह उनसे, बोले

हमारा वक्त गुजर गया ।


5। 

अहसास का लब्ज़ बनता

तो शायद वो तुम होती,

अगर ख़ामोशी कुछ कहती

वो तुम ही होती ।


6।

दिदार होताथा उनसे हररोज़,

पर नही आजकल,

वो खिड़की

हमेशा बंद रहती हैं ।


7।

सत्यका एक विशेषण 'अटल ' है ।

अटल ही अंतिम है ।


#श्रद्धांजली